Motivational Spiritual Stories
गुरु का महत्त्व
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किसी राज्य में एक संत की प्रख्यात उपाधि थी। दूर दूर तक उनकी महिमा के गुणगान थे। विख्यात गुणवत्ता के कारण सभी उनके प्रवचन सुनने दूर दूर से आते थे। धीरे धीरे सभी और संत का और संत के वचनों का महत्त्व बढ़ने लगा।
उसी राज्य के राजा भीम सेन के कानों तक भी ये बात पहुँच गयी। राजा बहुत ही दयालु और करुणाप्रिय स्व्भाव का था परमात्मा को पाना तो चाहता था पर अपने व्यस्त दिनचर्या के कारण गुरु के महत्व से अनजान था। समाजिक धरम करम पूजा अर्चना को ही परमात्मा से जुड़ाव मानता था। जब सभी चीज़ों को आजमा कर मन भर गया और भी कोई ज्ञान न मिला तो उसने सोचा चलो संत ज्ञानी है और इन्ही से जानते है प्रभु भक्ति के रहस्य। शायद कुछ समझ आ जाये।
यही सोच राजा संत के पास गया और अपनी व्यथा सुनाई। संत ने भी ध्यान पूर्वक राजा की मनो स्थिति का जायज़ा लिया।राजा बोला ,"हे संत किरपालु कृपया मेरी समस्या का भी निदान करें ,मेरा मन प्रभु को पाने के लिए विचलित है, बताईये कैसे होगा ये सब"., संत बोले ,"राजन तुम अपने परमार्थ के कामों से सिर्फ अपने अच्छे कर्म कमा रहे हो पर तुम्हारी रूहानियत प्रगति अभी शुरू भी नहीं हुई ,ये सब पहली सीढ़ी है अब आगे बढ़ो"। राजा बोला ," वो कैसे"।
संत ने समझाया ,"केवल गुरु ही तुम्हे रूहानियत तक लेके जा सकता है और कोई भी करम कांड नहीं", "राजन ,गुरु दीक्षा सवरूप नाम की कमाई से ही व्यक्ति करम को काट सकता है, नहीं तो यही बार बार जनम लेते रहोगे"। राजा ने संत की और देखा और बोला ,"फिर आप तो ज्ञानी है दूर दूर तक आपकी महिमा के गुणगान है , आप क्यों नहीं मुझे गुर दीक्षा दे देते। संत बोले ," अवश्य ,मैं तुम्हे "भला हो " नाम का गुर मंत्र देता हूँ बस इसे दोहराते रहना सुबह शाम"।
राजा ने संत को प्रणाम किया और वापस अपने राज्य आ गया पर दी हुई दीक्षा का इस्तेमाल नहीं किया क्योंकि उसे लगा संत तो ज्ञानी नहीं लगता ये भी कोई नाम है ,ये तो कोई भी जप सकता है इसमें क्या ज्ञान है क्या प्रभु भक्ति है सो उसने संत के दिए दिशा निर्देश पर चलने से इंकार कर अपने करम कांड को ही जारी रखना उचित समझा।
संत ने देखा कि राजा ने दीक्षा का इस्तेमाल शुरू भी नहीं किया और प्रभु भक्ति तो कोसो दूर है अभी, ज़रूर संशय में है, दयालु है ,सो मार्ग दर्शन करना मेरा फ़र्ज़ है ,काल उसे भक्ति से दूर कर रहा है, सो इसे समझाना होगा अपने तरीके से । यही सोच संत राजा के पास गए, उस वक़्त राजा की सभा लगी हुई थी राजा ने संत को आदर भाव दिया और आने का कारण पूछा,"आपने आने की चेष्ठा क्यों की ,मुझे बुला लेते गुरुदेव"।संत ने कुछ भी उत्तर न दिया और सैनिकों को आदेश दिया ," इस कपटी राजा को हिरासत में लिया जाये अभी" , सभी हैरान कि संत को क्या हुआ है। पर सब चुप चाप देख रहे थे। सैनिक भी मूक दर्शक बने सब देख रहे थे पर किसी ने भी संत का हुकम नहीं माना। ये देख संत को और क्रोध आ गया वे फिर बोले ,"इस कपटी राजा को हिरासत में लिया जाये अभी", ऐसा दो तीन बार हुआ। अब राजा को भी गुस्सा आ गया कि संत उसका अपमान कर रहे है उसकी प्रजा और मंत्री मंडल के समक्ष। जब राजा का सबर टूटा तो फिर उसने अपने सैनिकों को हुकम दिया ,"इस कपटी और सिरफिरे संत को हिरासत में लिया जाये अभी", राजा के कहने की ही देर थी कि सभी सैनिकों ने तुरंत संत को घेर लिया ,संत मुस्कराने लगे ," देखा राजन ! मैंने इतनी बार कहा," इस कपटी राजा को हिरासत में लिया जाये अभी", पर किसी ने गौर नहीं किया और न ही मेरा हुकम माना ,पर तुम्हारे एक बार कहने पर ही सब मेरी और दौड़ पड़े। राजा बोला ," क्योंकि यहाँ मैं ही राजा हूँ और यहाँ मेरा राज ही चलेगा ना ", "आप कितने भी बड़े संत क्यों ना हो चाहे"।
संत बोले ," राजन! यही सब उसकी दरगाह में भी चलता है क्योंकि वो शहंशाह है और सबको उसी का हुकम मानना ही पड़ता है, जैसे तुम अगर खुद "भला हो "करोगे तो कोई सुनवाई नहीं होगी पर अगर वो कहे कि भला हो करो तो फ़ौरन सुनवाई होगी, बात ओहदे की है तुमने दीक्षा ले ली पर अमल नहीं किया क्योंकि तुम्हारे मन में अहंकार था कि ये तो कोई भी कर सकता है।
शक्ति " शब्दों "में नहीं बल्कि "देने वाले के हाथ" होती है ,चाहे "भला हो " हो या चाहे "लाभ हो " हो। शक्ति दिए शब्दों को जरिया बनाती है रूहानियत की मंजिलों तक पुहंचने के लिए"।
राजा को अपनी गलती का अहसास हुआ और वे फौरन संत के चरणों में गिर पड़ा और क्षमा मांगी। तो देखा आपने 'गुरु का महत्त्व ', गुरु ही डूबती नइया को पार लगा सकते है सो गुर दीक्षा को सिर्फ लेना ही आपके जीवन का उद्देश्य नहीं उस पर अमल कर आगे बढ़ने से ही रूहानियत और गुर दीक्षा दोनो सफल होते हैं।
यही सोच राजा संत के पास गया और अपनी व्यथा सुनाई। संत ने भी ध्यान पूर्वक राजा की मनो स्थिति का जायज़ा लिया।राजा बोला ,"हे संत किरपालु कृपया मेरी समस्या का भी निदान करें ,मेरा मन प्रभु को पाने के लिए विचलित है, बताईये कैसे होगा ये सब"., संत बोले ,"राजन तुम अपने परमार्थ के कामों से सिर्फ अपने अच्छे कर्म कमा रहे हो पर तुम्हारी रूहानियत प्रगति अभी शुरू भी नहीं हुई ,ये सब पहली सीढ़ी है अब आगे बढ़ो"। राजा बोला ," वो कैसे"।
संत ने समझाया ,"केवल गुरु ही तुम्हे रूहानियत तक लेके जा सकता है और कोई भी करम कांड नहीं", "राजन ,गुरु दीक्षा सवरूप नाम की कमाई से ही व्यक्ति करम को काट सकता है, नहीं तो यही बार बार जनम लेते रहोगे"। राजा ने संत की और देखा और बोला ,"फिर आप तो ज्ञानी है दूर दूर तक आपकी महिमा के गुणगान है , आप क्यों नहीं मुझे गुर दीक्षा दे देते। संत बोले ," अवश्य ,मैं तुम्हे "भला हो " नाम का गुर मंत्र देता हूँ बस इसे दोहराते रहना सुबह शाम"।
राजा ने संत को प्रणाम किया और वापस अपने राज्य आ गया पर दी हुई दीक्षा का इस्तेमाल नहीं किया क्योंकि उसे लगा संत तो ज्ञानी नहीं लगता ये भी कोई नाम है ,ये तो कोई भी जप सकता है इसमें क्या ज्ञान है क्या प्रभु भक्ति है सो उसने संत के दिए दिशा निर्देश पर चलने से इंकार कर अपने करम कांड को ही जारी रखना उचित समझा।
और पढ़े कर्त्ता बड़ा या करतार
संत बोले ," राजन! यही सब उसकी दरगाह में भी चलता है क्योंकि वो शहंशाह है और सबको उसी का हुकम मानना ही पड़ता है, जैसे तुम अगर खुद "भला हो "करोगे तो कोई सुनवाई नहीं होगी पर अगर वो कहे कि भला हो करो तो फ़ौरन सुनवाई होगी, बात ओहदे की है तुमने दीक्षा ले ली पर अमल नहीं किया क्योंकि तुम्हारे मन में अहंकार था कि ये तो कोई भी कर सकता है।
शक्ति " शब्दों "में नहीं बल्कि "देने वाले के हाथ" होती है ,चाहे "भला हो " हो या चाहे "लाभ हो " हो। शक्ति दिए शब्दों को जरिया बनाती है रूहानियत की मंजिलों तक पुहंचने के लिए"।
राजा को अपनी गलती का अहसास हुआ और वे फौरन संत के चरणों में गिर पड़ा और क्षमा मांगी। तो देखा आपने 'गुरु का महत्त्व ', गुरु ही डूबती नइया को पार लगा सकते है सो गुर दीक्षा को सिर्फ लेना ही आपके जीवन का उद्देश्य नहीं उस पर अमल कर आगे बढ़ने से ही रूहानियत और गुर दीक्षा दोनो सफल होते हैं।